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Here is to The Crazy Ones, The Misfits, The Rebels, The Troublemakers.The Round Pegs in the Square Holes.... The Ones Who See Things Differently!

Monday, August 13, 2012

WHAT INDEPENDENCE MEAN TO US .....


"स्वतंत्रता मेरा जन्म-सिद्ध अधिकार है और मै इसे लेकर रहूँगा " , लोकमान्य तिलक जी के ये शब्द 15 अगस्त सन 1947 की मध्यरात्रि को साकार हुए और उस दिन हमने सैकड़ों  सालों से  परतंत्र अपने देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराया और स्वतंत्र भारत में तिरंगा फहराया
ये आजादी हम लोगों ने इतनी आसानी से नहीं पायी, इसके लिए करोड़ों लोगों ने संघर्ष किया और अपनी सहादत दी महात्मा गाँधी , भगत सिंह, लोकमान्य तिलक , सुभाष चन्द्र बोष, वल्लभ भाई पटेल, चद्र शेखर आजाद, ऐसे करोड़ों लोगों ने अपनी जान की आहुति दी , तब जाकर आज हम खुली हवा में साँस ले पा रहे हैं  
हर साल इस दिन को हम स्वतंत्रता दिवस के रूप में मानते हैं और हजारों शहीदों  की सहादत को याद करते हैं और ये प्रण लेते हैं कि इस आज़ादी को हम कभी खोने नहीं देंगे
इस दिन पूरा देश हर्षौलास से भरा रहता है हर तरफ उमंग ही उमंग रहती है हर व्यक्ति आज़ादी के इस पर्व को जोश और उमंग के साथ मनाता है देश के प्रधानमंत्री लालकिले पर तिरंगा फहराते हैं और देश को संबोधित करते हैं स्कूलों , दफ्तरों , और हर जगह तिरंगा फहराया जाता है और मिठाइयाँ बांटी जाती हैं। तरह तरह के समारोह का आयोजन किया जाता है पूरा देश ख़ुशी और उमंग में सराबोर रहता है
आज़ादी के पावन पर्व को मानाने में काफी बदलाव आये हैं लेकिन मूल भावना वही है।लेकिन आज एक सवाल ये भी उठता है कि हम स्वतंत्रता से समझते क्या हैं ? इसका जवाब शायद वो लोग अच्छे से देते जिन्होंने इसको पाने के लिए अपनी जान कि आहुति दीफिर भी हम लोगों को समझना होगा कि स्वतंत्रता का मतलब क्या है ? कुछ लोग कहते हैं कि हम चाहे जो करे हम स्वतंत्र हैं , तरह तरह के गलत काम, भ्रष्टाचार ,दूसरों को परेशान करना , उन पर अन्याय करना , गुंडागर्दी , क्या ये सब स्वतंत्रता को परिभाषित करते हैं ? क्या इसी भारत कि कल्पना करके हमारे शहीदों ने कुर्बानी दी थी ?
इसका जवाब है "नहीं"  
दरअसल स्वतंत्रता का मतलब ये नहीं कि हम कुछ भी करें 'हम तभी तक स्वतंत्र है जब तक किसी और कि स्वतंत्रता हमारी स्वतंत्रता के कारण बाधित हो हमे कोई भी ऐसा काम नहीं करना चहिये जिससे किसी दुसरे को नुक्सान हो या कष्ट पहुंचे हमे कोई भी ऐसा काम नहीं करना चहिये जिससे इस देश कि सम्प्रभुता पर आंच आये      
अंत में  इस पावन अवसर पर  यही कहना चाहूँगा कि हमे इस स्वतंत्रता के महत्व को समझना चहिये और ये प्रण लेना चहिये कि इस देश कि स्वंत्रता , सम्प्रभुता और आन-बान और शान पर कभी आँच नहीं आने देंगे।
आजादी  कि  कभी शाम  नहीं  होने  देंगे ,
शहीदों  कि कुर्बानी बदनाम  नहीं  होने  देंगे
बची  हो  जो  एक  बूंद  भी  गरम  लहू  कि
तब  तक  भारत  माता  का  आँचल  नीलाम  नहीं  होने  देंगे   

JAI HIND , JAI BHARAT ...!!

Saturday, August 11, 2012

The Dual Thinking Of Selfish Society

हमारा समाज विभिन्न जातियों -धर्म -सम्प्रदायों से मिलकर बना है । भांति भांति के लोग और हर किसी के अलग विचार । समाज के  विचारों पर , सोच पर कभी गौर किया जाये तो आपको बहुतायत में दोहरी विचारधारा वाले लोग मिलेंगे । हर कोई गलत काम नहीं करने के लिए कहेगा लेकिन वही करेगा , महिलाओं के  प्रति दोहरी विचारधारा , भ्रस्टाचार लोग न करने के लिए बोलेंगे लेकिन अधिकतर लोग इससे अपने आप को अछूता नहीं रख पाते हैं।

यहाँ पर मैं सिर्फ कुछ खास मुदों को ही उठाऊँगा जिसमें सबसे पहले महिलाओं की स्थिति है। हमारा देश अतीत से ही धर्म और आस्था के लिए जाना जाता है। महिलाओं को धर्मं में बड़ा ही पूजनीय स्थान मिला है लेकिन अतीत से लेकर आज तक महिलाओं की दशा (या दुर्दशा ) किसी से छुपी नहीं है । ऐसा क्यों है की महिलाओं की स्थिति में  सुधार बहुत कम है , ये हमारे समाज की दोहरी विचारधारा को ही दिखलाता  है । हर  धर्म में देवियों को पूजा जाता है और उनको उच्च स्थान प्राप्त है । अनेक त्यौहार जैसे दुर्गा पूजा , नवरात या फिर अनेकों तीर्थ स्थल(जैसे वैष्णो देवी ) पर लोग करोड़ों की संख्या में पूजा- अर्चना करते है ।
महिलाओं, लड़कियों, बच्चियों  को देवी स्वरुप मानकर उनकी पूजा की जाती है लेकिन वास्तविकता में उनकी दशा क्या है - आज लोग लड़कियों को जन्म ही नहीं देना चाहते , सेक्स ratio  दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है । महिलाओं पर तरह तरह क प्रतिबन्ध लगाये जाते हैं ।उन पर अत्याचारों की दास्तान बहुत लम्बी है और  किसी से अछूती भी नहीं है। इसे दोहरी विचारधारा न कहा जाये तो और क्या कहा जाये -एक तरफ तो आप उन्हें पूजते हैं और दूसरी तरफ उन्ही पर आप अत्याचार करते हैं ।  

दरसल ये समाज स्वार्थी लोगों से भरा हुआ है , वो सिर्फ अपनी स्वार्थ सिधि के लिए ही पूजा करते हैं । सही मायने में ये समाज महिलाओं को उतनी इज्जत  देता ही जिसकी वजह से उनकी दशा दिन प्रतिदिन बिगडती जा रही है ।
 दूसरा उदाहरण भी धर्म की आस्था से ही है , अधिकतर लोग पूजा अर्चना करते हैं और वो सिर्फ इसीलिए पूजा करते हैं की उनका कोई न कोई स्वार्थ या मनोकामना पूरी हो जाये ।वैसे इसमे कोई गलत बात भी नहीं है क्योंकि याचक अगर दाता से कुछ नहीं मांगेगा तो किस से मांगेगा । लेकिन करोड़ों की तादात में आपने ऐसी भी लोग देखे होंगे जो अपने पापों का प्रायश्चित करते है और प्रायश्चित करने क बाद फिर से पाप करते हैं इस तरह एक तरफ तो हम आस्था रख कर गलत न करने का वादा करते हैं लेकिन फिर उसी आस्था को ठोकर मारकर  गलत कम करते हैं ।

ये तो सिर्फ कुछ ही उदाहरण थे हमर समाज ऐसी तमाम दोहरी विचारधारा और इसको अपनाने वाले लोगों से भरा पड़ा है । अंतत सिर्फ इतना ही कहूँगा की हमे इस तरह की विचारधाराओं को नष्ट करके एक स्वस्थ समाज का निर्माण करना चहिये।

  

Sunday, August 5, 2012

MARRIAGES

शादियाँ , दो लोगों और दो परिवारों को जोड़ने का तरीका जो सदियों से चलता आ रहा है और हमेशा चलता रहेगा । शादी  एक  पावन रिश्ता है जिसमे एक लड़का और लड़की एक साथ रहने और एक दुसरे का सुख दुःख में हमेशा साथ देने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं ।
प्राचीन काल से लेकर आज तक हर धर्म में भिन्न-भिन्न तरीके से शादियाँ  होती हैं लेकिन मूल भावना  एक ही होती है ।
वैसे तो तरह तरह से शादियाँ होती हैं लेकिन वास्तविक रूप में सिर्फ दो प्रकार से शादियाँ होती हैं  पहला Arrange Marriage जो सदियों से चलती आ रही है और दूसरा Love Marriage, ये भी सदियों से चलती आ रही है लेकिन इसके  उदाहरण बहुत कम ही मिलते हैं  ।
Arranged marriage सदियों से चलती आ रही एक रीती जिसमे माँ -बाप लड़की या लड़के के लिए वर-या वधु की खोज करते हैं और उसके बाद उनकी शादी की जाती हैं ।
Love marriage , इसका प्रचलन विगत कुछ दशकों में बहुत तीव्र गति से बढ़ा है हालाँकि इसके उदाहरण  भी मिलते रहे हैं लेकिन बहुत कम क्योंकि हमारा समाज इसकी इजाजत नहीं देता । इसमे लड़का -लड़की अपनी मर्जी से एक दुसरे को पसंद करते है और शादी  करते हैं ।

अब हर तरह की शादी की कुछ खूबियाँ भी होती है तो कुछ कमियां भी ।

Arrange  Marriage  , इसमे सिर्फ माँ - बाप को वैचारिक स्वतंत्रता है उनकी संतानों को नहीं ।वो अपनी संतान के  लिए अच्छा बुरा जो सोचेंगे वो उनकी संतानों को मानना पड़ेगा । हालाँकि थोड़ी वैचारिक स्वतंत्रता अब मिलने लगी है लेकिन पहले ऐसा नहीं था ।
 सबसे पहले Arrange  Marriage  की खूबियों पर नजर डालें तो सबसे खास बात की इसमे सिर्फ दो लोगों का मिलन नहीं होता बल्कि दो परिवारों का मिलन होता है , नए रिश्ते बनते हैं । अधिकतर  इसमे पूरा परिवार एक साथ रहता है जिससे पारिवारिक परिवेश अच्छा बना रहता है । इसमे शादियाँ लगभग उम्र भर चलती है क्योंकि इस रिश्ते को निभाने का घर परिवार की तरफ से भी दबाव बनता रहता है और अगर कोई समस्या आती है तो सब लोग मिलकर उसका हल निकल लेते हैं।
love marrige , इसमे दो लोगों को एक दूसरे से इश्क होता है तत्पश्चात वो लोग शादी करते हैं ।इसमे जिसको शादी करनी है उसको वाचारिक स्वंत्रता प्राप्त होती है की वो अपनी मर्जी से पसंद करते हैं , एक दूसरे को समझते हैं । हालाँकि इस तरह की शादियों को support  बहुत कम मिलता है ।

अब बात आती है की दोनों तरह की शादियों में अच्छी शादी कौन सी है ?

दरसल दोनों शादियों की महत्ता अलग है । अगर love  marriage को देखें तो लड़के और लड़की में  पहले इश्क होता है और उसके बाद वो शादी करते है लेकिन इश्क होना और करना इतना आसन तो है नही और दुनिया के  हर लड़के  और  लड़की के  बीच  इश्क तो हो नहीं सकता तो वो बेचारे क्या करेंगे , इनके लिए तो उनके माँ-बाप को ही खोजना पड़ेगा  नहीं तो वो बेचारे कुंवारे ही मर जायेंगे।
तो वहीँ arranege  marriage में हमे अधिकार नहीं होता जीवनसाथी चुनने का ,जो की गलत है क्योंकि जीवन हमे बितान है तो अधिकार भी हमे ही होना चहिये।
अधिकतर लोग कहते है की arrange  marriage , love  marriage की अपेक्षा ज्यादा successful  होती है लेकिन ऐसा नहीं है क्योंकि अगर लोग एक दूसरे को समझते हैं तो उनमे मतभेद भी कम होता है हालाँकि अगर कभी मतभेद होता है तो वहां परिवार के लोग नहीं होते समझाने को इसलिए सायद रिश्ते टूट जाते हैं जबकि arrange  marriage  में परिवार की उपस्थिति का फायदा मिलता है ।
अंतत यही कहूँगा की हर marriage की अपनी एक अलग महत्ता और पहचान है ।
हाँ अगर love  marriage पर arrange  होने की अगर मोहर लग जाये तो वो marriage  सबसे बढ़िया होगी |


Wednesday, June 6, 2012

CORRUPTION-A THOUGHT

आज देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लहर दौड़ रही है। तमाम लोग भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं । भ्रष्टाचार दिन-प्रतिदिन हमारे समाज में विष की तरह फैलता जा रहा है और हमारे समाज को खोखला कर रहा है। तरह तरह के सुझाव भी दिए जा रहे हैं भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए लेकिन क्या इनसे पूरी तरह भ्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा ये एक बहुत बड़ा  सवाल है।
भ्रष्टाचार(भ्रष्ट+आचार) यानि आचरण मैं असुधता अर्थात गलत ढंग से किये गये क्रिया-कलाप। अब गौर करने वाली बात लोग भ्रष्टाचार करते क्यों  है  क्योकि  इसी सवाल में भ्रष्टाचार पर रोक लगाने का जवाब है।
दरसल भ्रष्टाचार एक सोच है, जिसके तहत आदमी भ्रष्ट क्रिया कलाप करता है। उसकी सोच अशुद्ध होने के फलस्वरूप वो घूस  लेता है , घोटाले करता है या अन्य कोई भी गलत कम करता है। उसकी सोच उसे गलत कम करने के लिए विवश करती है। तो यदि भ्रष्टाचार वयक्तिगत या सामाजिक सोच के तहत आता है तो इस पर रोक कैसे लगायी जाये ?
अगर पूरी तरह से भ्रष्टाचार मिटाना है  तो उसका सिर्फ एक ही उपाय है की लोगों की सोच बदले , उनके विचारों और क्रिया कलापों  में शुद्धता  आये । लोगों में इतनी बौद्धिकता का विकास किया जाये की वे सोच सके की क्या सही है क्या गलत । इस तरह तरह का सामाजिक परिवेश जब  बन जायेगा तो लोग गलत काम नहीं करेंगे और फलस्वरूप भ्रष्टाचार समाप्त हो जायेगा ।
लेकिन क्या सबकी सोच को पवित्र और शुध किया जा सकता है? इसका जवाब है 'नहीं' ।यह एक आदर्श परिवेश होगा जिसका होना बहुत मुश्किल है।
तो अगर सोच सबकी नहीं बदल सकते तो दूसरा उपाय क्या है ? दूसरा उपाय यही है जिसकी मांग आज देश कर रहा है। हमे भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े नियम कायदे बनाने पड़ेंगे जिससे लोग दरें किसी भी गलत काम को करने से । हालाँकि ये एक हद तक ही भ्रष्टाचार पर रोक लगा पायेग। 
अंततः  सिर्फ यही कहूँगा लोग अगर अपनी सोच  में शुद्धता लायें , अपने आने वाली पीढ़ी में अच्छे  संस्कारों का विकास करें तभी हमरा समाज पूरी तरह भ्रष्टाचार के चंगुल से मुक्त हो सकेगा ।
 
 

Friday, May 11, 2012

22/28 रूपए जीने के लिए -हास या परिहास ..!!

भारत सरकार की नयी गरीबी रेखा जिसके तहत  गावों में रहने वाले 22 रूपए और शहरों  में  रहने वाले 28 रूपए  से अधिक पाते हैं तो वो गरीब नहीं हैं। इन नए आंकड़ों का हर किसी ने विरोध किया , अधिकतर लोग ये कह  रहे  हैं  कि  सरकार  ने  ऐसा  करके लाखों  लोगों  का  तबका  गरीबी  से  बाहर कर  दिया  जिससे  इनकी  साख  बच  गयी ।
ये तो खैर राजनीति का खेल है । अगर  इसके  दूसरे  पहलुओं  पर गौर  फ़रमाया  जाया तो वो काफी विचारोयोक्त  है। आज  भारत  एक  सशक्त अर्थव्यवस्था  के  रूप  में  अपने  आप  को  दुनिया  के  समक्ष  रख  रहा  है  लेकिन  अगर  इन  आंकड़ों  की  माने  तो  आज  भी  लाखों  लोग  मात्र  22  और  28  रुपये  के  लिए जूझ रहें  है , आजादी के  64 साल  बाद  भी  मात्र  22  रुपये  लाखों   लोग  नही कमा पा  रहे  है  ये  क्या  अपने  आप  में  शर्म  की  बात  नही  है ।
मूलभूत  आवश्यक्त्ओं  की  अगर बात  भी  न  की  जाय  तो  सिर्फ  दो  वक़्त  की  रोटी  के  लिए  लाखों  लोग  जदोजहत  कर  रहे  हैं।  अमीर और अमीर बनता जा रहा है और गरीब धरातल में समाता जा रहा है। ये  किस  भारतीय  अर्थव्यवस्था  को  दर्शाता  है?  अगर  इस नयी  रेखा  को  माने  तो 23  रुपये  पाने  वाला  गरीब  नहीं लेकिन  इस बढती महंगाई में  मात्र  23 रुपये में  क्या आएगा , क्या कभी सरकार   ने सोचा है ?  अगर  कुछ  नहीं  सिर्फ  आटे   और  दाल  का हिसाब जोड़े तो 16 रूपये किलो और 80  रूपये  किलो  के  हिसाब  से  मात्र 1 किलो आटा  और 100 ग्राम दाल आएगी  जिसमें  उसे  खुद  और  अपने  परिवार  का  निर्वहन  करना है  । इस  हिसाब से तो  जब खाने की आवयश्कता ही नहीं पूरी हो रही तो  बाकि जरूरते कहां  से  पूरी  होंगी । ये तो  एक बहुत बड़ी विकत स्थिति है , यहाँ  तो  हालत भूखमरी  के  हो गये हैं और सरकार  कहती  है  की  23 रूपए पाने वाला गरीब नहीं |
वैसे  हमारे  नेता  और  सरकार हमेशा  से  ही  बचते  रहे  हैं,  उनके  अनुसार भारत  में  लोग  कुपोषण  के   शिकार  जरुर  है  परन्तु  भुखमरी  नहीं  फैली  है  लेकिन  उनसे  कोई  पूछे कि   किसी  को  चार  दिन  खाना  न   मिले  तो  उसे  भुखमरी  कहेंगे या  कुपोषण । कुपोषण शब्द  का  इस्तेमाल  वो  इसलिए  करते  है   क्युओंकी  भारतीय  लोग  थोडा सुसुप्त होते  हैं  और वे ये सोचेंगे की पोषण  तो  मिल  ही  रहा  है  और  शांत  हो  जायेंगे  और  उनका  खेल  चलता  रहेगा। 
इन  नए  आंकड़ों  के  बाद  कुछ  निजी  समाज सेवकों  और  NGO  ने  भी  सर्वे  करवाया  जिसके अनुसार 105  रूपये  शहरों  में  और  66  रूपए  गावों  वों  में  पाने  वाला  गरीब  नहीं  है ।
अंत  में  सिर्फ इतना  ही  कहना  चाहूँगा  कि  जिस देश  में  अभी  भी व्यक्ति 22 रूपये (आंकड़ों  के अनुसार ) के  लिए संघर्श कर  रहा  है  वो  देश  कैसे  सशक्त  अर्थव्यवस्था  बनेगा ?  कैसे  विकास  करेगा ?  कैसे  दुनिया  के  मानचित्र  पर  अपनी छाप  छोड़ेगा ?......ये हमे , आपको  और  इस देश  की  सोयी  हुई  सरकार  को  जरुर  सोचना  पड़ेगा।

Monday, April 2, 2012

चार लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे ....????

जीवन मे हम लोगों ने इस वाक्य को कभी न कभी सुना जरुर होगा, और सुना ही नहीं होगा अपने ऊपर अपने सुभ्चिन्तकों द्वारा बोलते हुए भी पाया होगा ' चार लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे '।
जब भी उन पलों को याद किया जाता है थोड़ी हंसी आती है लेकिन वो बड़ी ही विकट स्थिति होती थी जब आप पर आपके प्रियजनों (अधिकंशाथ आपके माता-पिता ) द्वारा बोला जाता था । मन ही मन बड़ा गुस्सा भी आता होगा की आखिर ये 'चार लोग हैं कौन?' जो हर बात मैं अड़ जाते हैं और जिनका डर बहुत ज्यादा व्याप्त है । अपनी मर्जी से कोई काम ही नहीं कर सकते । बचपन से लेकर आखिरी सांस तक इन चार लोगों का डर बहुत सताता है । यहाँ मत जाओ , ये काम मत करो, ऐसे मत बोलो ऐसी तमाम चीजों के आगे ये वाक्य जरुर आ जाता था की चार लोग देखेंगे या सुनेंगे तो क्या कहेंगे ।
अब दिमाग मे यही आता है की ये चार लोग है कौन , इनके पास अपना कोई काम-धंधा नहीं है जो हमे ही देखते रहते है । इनके पास कितना खाली वक़्त है, जो सिर्फ हमे सुनने और देखने में ही लगा देते हैं और उसके बाद निष्कर्ष भी निकाल कर सब जगह बताने का भी समय निकाल आता है।
जिनके पास खुद कोई काम नहीं सिवाय दूसरों को सुनने और देखने और उसके बाद उसका निष्कर्ष भी निकलने निकलने का , उनका भय हमे क्युओं  सताता है?
इन चार लोगों क प्रभाव से हम अपने आप को बचा नहीं पाते हैं । इनके कारण इन्सान को बहुत बंदिशों मे जीना पड़ता है । महिलाओं पर तो इनका और भी प्रभाव है । उनके हर क्रियाकलाप जैसे उठाना, बैठना, चलना, कपडे आदि सभी में इनका प्रभाव है ।
क्या हमें इन्सके प्रभाव में आना चाहिए ? क्या हमे इनसे डर कर काम करना चाहिए ? आखिर ये हैं कौन?
दरसल ये चार लोग हमारे आस पास रहने वाले समाज के लोग हैं । बहुत से मामलो में इनका प्रभाव  सही होता है । बहुत से गलत काम लोग सिर्फ इसी वजह से नहीं किये जाते  कि समाज में लोग क्या कहेंगे , उनकी इज्जत खराब हो जाएगी । तो इस तरह देखें तो ये बहुत ही उपयोगी लोग हैं ।
लेकी ये हर चीज़ में राय देंगे और लोग इनकी वजह से कुछ करेंगे ही नहीं तो ये गलत बात है ।
दरअसल हर इन्सान को पता होता है की क्या सही है क्या गलत । इन्सान को गलत काम कभी नहीं करना चाहिए और अगर वो सही है तो इन चार लोगों से नहीं डरना चाहिए ।
खेर अब आप लोग दूंढ़इए और समझिये की ये चार लोग हैं कौन जिन्होंने आपकी जिन्दगी में बड़ी उथल- पुथल मचा राखी है और जब आपको पता चल जाये तो तो आप भी उनके लिए उन चार लोगों में यथावत शामिल हो जाएँ और उनकी जिन्दगी भी चार लोगों के देखने और सुनने पर निर्भर कर दे । अब में भी यहीं समाप्त करता हूँ नहीं तो मुझे भी ...'चार लोग  देखेंगे तो बहुत कुछ कहेंगे ...!!!'    

Friday, March 23, 2012

Is the Universe Spinning? New Research Says "Yes"

Physicists and astronomers have long believed that the universe has mirror symmetry, like a basketball. But recent findings from the University of Michigan suggest that the shape of the Big Bang might be more complicated than previously thought, and that the early universe spun on an axis.Read more

Thursday, March 1, 2012

What Is RELIGION....??

धर्मं एक चिर-परिचित शब्द , जिसे हम अपनी बाल्यावस्था से ही अपने मन मष्तिस्क मे कंठस्त कर लेते है। हम कुछ और जान  पाए या नहीं, कुछ सोच सके या नहीं ..हम इस बात से जरुर अवगत हो जाते हैं की हमारा धर्मं क्या है।
हमारा धर्मं क्या है ..ये बात मुझे बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है और सबसे बड़े सवाल मे उभर कर आती है की आखिर " धर्मं क्या है?" ..क्योँ हम लोग जिन्दगी भर बिना सोचे समझे इस धर्मं का अनुसरण करते रहते हैं। अब अगर मैं ये कहूं की क्योँ न अनुसरण करें ..हमारे माता-पिता , हमारे पुर्वज इन वास्तविक और काल्पनिक मान्यताओं, नियम-कायदों का पालन करते आ रहे हैं, तो ये पक्ष भी विचारोयोक्त है।
अब अगर हम इसके दुसरे बिंदु पर गौर फरमाएं की हम अनुसरण करें तो क्योँ  करें ? हम क्योँ किसी भी मान्यता या नियम का पालन करें, हमे तथाकथित इश्वर ने मस्तिस्क प्रदत किया है, तो हम क्योँ बिना सोचे समझे कुछ भी मान ले।
इन सब प्रश्नों का उतर खोजने निकला जाये तो इन्सान को वास्तविक जड़ मे जाना होगा, हमे जानना होगा की आखिर 'धर्मं क्या है?' ..क्या तथाकथित इश्वर ने ऊपर से 'गीता' , 'कुरान' 'रामायण' 'bible'  और अन्य धर्म की किताबे  दी और कहा "हे मनुष्य ये धर्म ग्रन्थ मे तुम्हे दे रहा हूँ, अपने पूरे जीवन काल मे तुम इसी का अनुसरण करना अन्यथा तुम प्रकोप क भागीदारी बनोगे ।"
आखिर ये इतनी उलझी पहेली है क्या ?..विज्ञानं का छात्र होने क नाते (और न भी हूँ तो अपने विवेक से सोचने पर ) मैं इन बातों को मानने मे थोडा गुरेज करूंगा क्योंकि हम जानते है की 'इस धरती का जन्म कैसे हुआ था '...'कैसे इस पर जीवन की उत्पति हुई ..कैसे मनुष्य का प्रादुर्भाव इस धरा पर हुआ ..आदिकाल से लेकर आज के  इस नवीनतम युग तक किस तरह इन्सान ने अपने आप को परिवर्तित किया है।'
अब अगर इन सब बातों पर विचार किया जाय तो हम उस सवाल के जवाब थोडा निकट आ पाएंगे। आज दुनिया में बहुत से धर्मं है जिनका लोग अनुसरण करते हैं लेकिन अगर हम कहते हैं कि हमे उस इश्वर ने बनाया है तो हमारा-सबका धर्म एक ही होना चहिये।पुरातन काल से लेकर आज तक मनुष्य इतनी सारी सभ्यताओं का  अनुसरण करता आ रहा है तो ' इतनी विवधता क्योँ है..?' यही प्रश्न हमे और आपको कुछ सोचने पर मजबूर करता है।
हम अगर धर्मं को मनुष्य से  हटाकर सोचें तो हम ये पाएंगे कि मनुष्य जाति मे भी बहुत अधिक विवधता है । उसमे ये विवधता उसके प्राकर्तिक स्वरुप के कारण , जलवायु के कारण और अन्य बहुत से कारणों से है।अगर हम आदिकाल मे भी देखें तो कहीं मानव अधिक विकसित था तो कहीं कम । 'जब  थोडा विकास हुआ तो मानव "कबीलों" और " समूहों" में रहने लगा और संसार का हर कबीला और समूह एक दुसरे से भिन्न था और अलग अलग मान्यताओं का अनुसरण करता था ।
तो हम जरा गौर से इन सारी बातों को समझे तो हमे अपने सवाल का बहुत हद तक जवाब मिल गया है ।अगर मै सारे सवालों को एक-एक करके उठाऊँ तो सबसे पहले धर्मं क्या है -'दरसल हम धर्मं में तरह तरह क नियम कायदों का पालन करते है जो हमे सही ढंग से जीना सिखाते हैं, हम अपने जीवन को किस तरह सुनियोजित ढंग से जिससे हमे और समाज को एक नयी दिशा मिले , हमारा पूर्ण-रूपेण विकास हो सके, खुशाल जीवन व्यतीत कर सकें , किस तरह हमे रिश्तों का पालन करना चाइये जिससे समाज संगठित रूप से रह सके और प्रगति कर सके ।'
अब बात आती है कि इतने सारे धरम क्योँ है ?  कैसे हुआ इतने धर्मो का विकास ?
तो इस पर हम अगर वर्णित किये गए आदिकाल से देखे तो ऊतर मिल जायेगा। "जिस तरह दुनिया में हजारों कबीलों और समूहों में लोग रहते थे , और सबकी मान्यताएं अलग थी , वहीँ से धर्मं का विकास शुरू हुआ।
मनुष्य इन छोटे समूहों में नियम कायदे बनाकर रहता था जिससे सही ढंग से जीवन यापन कर सके , धीरे-धीरे छोटे समूह बड़े समूहों में तब्दील हो गए , जिन समूहों क विचारों में थोड़ी समानता थी उन्होंने थोड़े फेरबदल कर के एक नयी विचार धरा को रखकर एक बड़े समूह का संघटन किया । धीरे-धीरे ये समूह और बड़े होते गए और इनकी विचारधारा ने धर्मं कि शक्ल इख़्तियार कि जिसको समाज के बड़े हिस्से मे पालन किया जाने लगा।"
  अंततः  हम ये कह सकते हैं कि धर्मं हमे यही सिखाते है कि किस तरह आप नियमों का पालन कर के एक खुशाल जीवन बिता सकते हैं तथा अपने और समाज का विकास कर सकते हैं ।