हमारा समाज विभिन्न जातियों -धर्म -सम्प्रदायों से मिलकर बना है । भांति भांति के लोग और हर किसी के अलग विचार । समाज के विचारों पर , सोच पर कभी गौर किया जाये तो आपको बहुतायत में दोहरी विचारधारा वाले लोग मिलेंगे । हर कोई गलत काम नहीं करने के लिए कहेगा लेकिन वही करेगा , महिलाओं के प्रति दोहरी विचारधारा , भ्रस्टाचार लोग न करने के लिए बोलेंगे लेकिन अधिकतर लोग इससे अपने आप को अछूता नहीं रख पाते हैं।
यहाँ पर मैं सिर्फ कुछ खास मुदों को ही उठाऊँगा जिसमें सबसे पहले महिलाओं की स्थिति है। हमारा देश अतीत से ही धर्म और आस्था के लिए जाना जाता है। महिलाओं को धर्मं में बड़ा ही पूजनीय स्थान मिला है लेकिन अतीत से लेकर आज तक महिलाओं की दशा (या दुर्दशा ) किसी से छुपी नहीं है । ऐसा क्यों है की महिलाओं की स्थिति में सुधार बहुत कम है , ये हमारे समाज की दोहरी विचारधारा को ही दिखलाता है । हर धर्म में देवियों को पूजा जाता है और उनको उच्च स्थान प्राप्त है । अनेक त्यौहार जैसे दुर्गा पूजा , नवरात या फिर अनेकों तीर्थ स्थल(जैसे वैष्णो देवी ) पर लोग करोड़ों की संख्या में पूजा- अर्चना करते है ।
महिलाओं, लड़कियों, बच्चियों को देवी स्वरुप मानकर उनकी पूजा की जाती है लेकिन वास्तविकता में उनकी दशा क्या है - आज लोग लड़कियों को जन्म ही नहीं देना चाहते , सेक्स ratio दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है । महिलाओं पर तरह तरह क प्रतिबन्ध लगाये जाते हैं ।उन पर अत्याचारों की दास्तान बहुत लम्बी है और किसी से अछूती भी नहीं है। इसे दोहरी विचारधारा न कहा जाये तो और क्या कहा जाये -एक तरफ तो आप उन्हें पूजते हैं और दूसरी तरफ उन्ही पर आप अत्याचार करते हैं ।
दरसल ये समाज स्वार्थी लोगों से भरा हुआ है , वो सिर्फ अपनी स्वार्थ सिधि के लिए ही पूजा करते हैं । सही मायने में ये समाज महिलाओं को उतनी इज्जत देता ही जिसकी वजह से उनकी दशा दिन प्रतिदिन बिगडती जा रही है ।
दूसरा उदाहरण भी धर्म की आस्था से ही है , अधिकतर लोग पूजा अर्चना करते हैं और वो सिर्फ इसीलिए पूजा करते हैं की उनका कोई न कोई स्वार्थ या मनोकामना पूरी हो जाये ।वैसे इसमे कोई गलत बात भी नहीं है क्योंकि याचक अगर दाता से कुछ नहीं मांगेगा तो किस से मांगेगा । लेकिन करोड़ों की तादात में आपने ऐसी भी लोग देखे होंगे जो अपने पापों का प्रायश्चित करते है और प्रायश्चित करने क बाद फिर से पाप करते हैं इस तरह एक तरफ तो हम आस्था रख कर गलत न करने का वादा करते हैं लेकिन फिर उसी आस्था को ठोकर मारकर गलत कम करते हैं ।
ये तो सिर्फ कुछ ही उदाहरण थे हमर समाज ऐसी तमाम दोहरी विचारधारा और इसको अपनाने वाले लोगों से भरा पड़ा है । अंतत सिर्फ इतना ही कहूँगा की हमे इस तरह की विचारधाराओं को नष्ट करके एक स्वस्थ समाज का निर्माण करना चहिये।
यहाँ पर मैं सिर्फ कुछ खास मुदों को ही उठाऊँगा जिसमें सबसे पहले महिलाओं की स्थिति है। हमारा देश अतीत से ही धर्म और आस्था के लिए जाना जाता है। महिलाओं को धर्मं में बड़ा ही पूजनीय स्थान मिला है लेकिन अतीत से लेकर आज तक महिलाओं की दशा (या दुर्दशा ) किसी से छुपी नहीं है । ऐसा क्यों है की महिलाओं की स्थिति में सुधार बहुत कम है , ये हमारे समाज की दोहरी विचारधारा को ही दिखलाता है । हर धर्म में देवियों को पूजा जाता है और उनको उच्च स्थान प्राप्त है । अनेक त्यौहार जैसे दुर्गा पूजा , नवरात या फिर अनेकों तीर्थ स्थल(जैसे वैष्णो देवी ) पर लोग करोड़ों की संख्या में पूजा- अर्चना करते है ।
महिलाओं, लड़कियों, बच्चियों को देवी स्वरुप मानकर उनकी पूजा की जाती है लेकिन वास्तविकता में उनकी दशा क्या है - आज लोग लड़कियों को जन्म ही नहीं देना चाहते , सेक्स ratio दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है । महिलाओं पर तरह तरह क प्रतिबन्ध लगाये जाते हैं ।उन पर अत्याचारों की दास्तान बहुत लम्बी है और किसी से अछूती भी नहीं है। इसे दोहरी विचारधारा न कहा जाये तो और क्या कहा जाये -एक तरफ तो आप उन्हें पूजते हैं और दूसरी तरफ उन्ही पर आप अत्याचार करते हैं ।
दरसल ये समाज स्वार्थी लोगों से भरा हुआ है , वो सिर्फ अपनी स्वार्थ सिधि के लिए ही पूजा करते हैं । सही मायने में ये समाज महिलाओं को उतनी इज्जत देता ही जिसकी वजह से उनकी दशा दिन प्रतिदिन बिगडती जा रही है ।
दूसरा उदाहरण भी धर्म की आस्था से ही है , अधिकतर लोग पूजा अर्चना करते हैं और वो सिर्फ इसीलिए पूजा करते हैं की उनका कोई न कोई स्वार्थ या मनोकामना पूरी हो जाये ।वैसे इसमे कोई गलत बात भी नहीं है क्योंकि याचक अगर दाता से कुछ नहीं मांगेगा तो किस से मांगेगा । लेकिन करोड़ों की तादात में आपने ऐसी भी लोग देखे होंगे जो अपने पापों का प्रायश्चित करते है और प्रायश्चित करने क बाद फिर से पाप करते हैं इस तरह एक तरफ तो हम आस्था रख कर गलत न करने का वादा करते हैं लेकिन फिर उसी आस्था को ठोकर मारकर गलत कम करते हैं ।
ये तो सिर्फ कुछ ही उदाहरण थे हमर समाज ऐसी तमाम दोहरी विचारधारा और इसको अपनाने वाले लोगों से भरा पड़ा है । अंतत सिर्फ इतना ही कहूँगा की हमे इस तरह की विचारधाराओं को नष्ट करके एक स्वस्थ समाज का निर्माण करना चहिये।
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