भारत सरकार की नयी गरीबी रेखा जिसके तहत गावों में रहने वाले 22 रूपए और शहरों में रहने वाले 28 रूपए से अधिक पाते हैं तो वो गरीब नहीं हैं। इन नए आंकड़ों का हर किसी ने विरोध किया , अधिकतर लोग ये कह रहे हैं कि सरकार ने ऐसा करके लाखों लोगों का तबका गरीबी से बाहर कर दिया जिससे इनकी साख बच गयी ।
ये तो खैर राजनीति का खेल है । अगर इसके दूसरे पहलुओं पर गौर फ़रमाया जाया तो वो काफी विचारोयोक्त है। आज भारत एक सशक्त अर्थव्यवस्था के रूप में अपने आप को दुनिया के समक्ष रख रहा है लेकिन अगर इन आंकड़ों की माने तो आज भी लाखों लोग मात्र 22 और 28 रुपये के लिए जूझ रहें है , आजादी के 64 साल बाद भी मात्र 22 रुपये लाखों लोग नही कमा पा रहे है ये क्या अपने आप में शर्म की बात नही है ।
मूलभूत आवश्यक्त्ओं की अगर बात भी न की जाय तो सिर्फ दो वक़्त की रोटी के लिए लाखों लोग जदोजहत कर रहे हैं। अमीर और अमीर बनता जा रहा है और गरीब धरातल में समाता जा रहा है। ये किस भारतीय अर्थव्यवस्था को दर्शाता है? अगर इस नयी रेखा को माने तो 23 रुपये पाने वाला गरीब नहीं लेकिन इस बढती महंगाई में मात्र 23 रुपये में क्या आएगा , क्या कभी सरकार ने सोचा है ? अगर कुछ नहीं सिर्फ आटे और दाल का हिसाब जोड़े तो 16 रूपये किलो और 80 रूपये किलो के हिसाब से मात्र 1 किलो आटा और 100 ग्राम दाल आएगी जिसमें उसे खुद और अपने परिवार का निर्वहन करना है । इस हिसाब से तो जब खाने की आवयश्कता ही नहीं पूरी हो रही तो बाकि जरूरते कहां से पूरी होंगी । ये तो एक बहुत बड़ी विकत स्थिति है , यहाँ तो हालत भूखमरी के हो गये हैं और सरकार कहती है की 23 रूपए पाने वाला गरीब नहीं |
वैसे हमारे नेता और सरकार हमेशा से ही बचते रहे हैं, उनके अनुसार भारत में लोग कुपोषण के शिकार जरुर है परन्तु भुखमरी नहीं फैली है लेकिन उनसे कोई पूछे कि किसी को चार दिन खाना न मिले तो उसे भुखमरी कहेंगे या कुपोषण । कुपोषण शब्द का इस्तेमाल वो इसलिए करते है क्युओंकी भारतीय लोग थोडा सुसुप्त होते हैं और वे ये सोचेंगे की पोषण तो मिल ही रहा है और शांत हो जायेंगे और उनका खेल चलता रहेगा।
इन नए आंकड़ों के बाद कुछ निजी समाज सेवकों और NGO ने भी सर्वे करवाया जिसके अनुसार 105 रूपये शहरों में और 66 रूपए गावों वों में पाने वाला गरीब नहीं है ।
अंत में सिर्फ इतना ही कहना चाहूँगा कि जिस देश में अभी भी व्यक्ति 22 रूपये (आंकड़ों के अनुसार ) के लिए संघर्श कर रहा है वो देश कैसे सशक्त अर्थव्यवस्था बनेगा ? कैसे विकास करेगा ? कैसे दुनिया के मानचित्र पर अपनी छाप छोड़ेगा ?......ये हमे , आपको और इस देश की सोयी हुई सरकार को जरुर सोचना पड़ेगा।
1 comments:
अद्भुत अंतर्दृष्टि भारतीय अर्थव्यवस्था और राजनीति पर
निराशाजनक लेकिन सच!!
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